Surprise Me!

संघर्ष और जीत || आचार्य प्रशांत

2025-11-05 0 Dailymotion

तुमने कप उठाया है, और एक पुराना पर्दा भी<br /><br />तुमने विश्वकप उठाया है, <br />और उसके साथ सदियों से झुके हुए करोड़ों सिरों को भी।<br />ऐसी जीतें मैदान की सीमाओं से आगे जाती हैं, <br />वे दिखाती हैं कि जब तुम आदिम भूमिकाएँ लाँघती हो,<br />तो क्या संभव हो जाता है।<br /><br />युगों से तुम्हें कविता में पूजा गया, जीवन में दबाया गया।<br />मंचों पर गाया गया, पर मैदान से वंचित रखा गया।<br />आज समय ने फिर देखा कि क्या होता है<br />जब तुम न कठपुतली बनती हो न देवी,<br />बल्कि जूझती हो खिलाड़ी, योद्धा, विजेता बनकर।<br /><br />देखे दुनिया कि दैवीयता किसी ठहरे हुए चलन का नहीं,<br />बल्कि मानवीय क्षमता के पूर्ण प्रस्फुटन का नाम है।<br />कि पवित्रता रीतियों के पुरातन जाल में नहीं बसती,<br />पवित्र वो है जो जंग-खाई जंज़ीरों को बेधड़क उखाड़ फेंके।<br /><br />सच्ची जीत प्रतिद्वंद्वी पर नहीं,<br />अपने ही बेड़ियों पर होती है:<br />व्यक्तिगत, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक।<br />जब स्त्री स्वतंत्र होकर खेलती है,<br />तब राष्ट्र स्वतंत्र होकर साँस लेता है।<br />जब स्त्री निर्भय होकर नाचती है,<br />तब पृथ्वी पर जीवन प्रश्रय पाता है।<br /><br />यह जीत किसी उत्सव पर समाप्त न हो।<br />कुछ प्रश्न गूँजते रहें:<br />कितनी भ्रूण-बालिकाएँ जीवन के मैदान पर उतर भी नहीं पातीं?<br />कितनों को अब भी कहा जाता है कि उनका स्थान निचले पायदान पर है?<br />और कितनी जो अब भी <br />शिक्षा, स्वाधीनता, स्वर <br />वंचित सबसे - मूक अशक्त!<br /><br />मैदान पर बना हर रन, उस रण की याद दिलाए <br />जो स्त्री आज भी हार रही है।<br />मैदान पर लगा हर चौका, उस चौके की याद दिलाए<br />जो रसोई से ज़्यादा जेल है।<br />गेंद तो सीमा रेखा पार कर गई, पर याद रखना<br />कोई अभी भी सीमा में ही कैद है।<br /><br />इतिहास इस दिन को केवल कप के लिए ही याद न रखे,<br />क्योंकि सच्ची विजय तब है<br />जब औरों के विजयी होने का मार्ग भी प्रशस्त हो।<br />यह दिन सहस्रों नई विजयों की भोर बने —<br />नए कपों की, नए मैदानों की, नई दिशाओं की।<br /><br />~ आचार्य प्रशांत<br /><br />#cwc2025<br />#cricketworldcup2025

Buy Now on CodeCanyon